निवेश के तरीके

स्थिर मुद्रा के प्रकार

स्थिर मुद्रा के प्रकार

वक्त की जरूरत है रुपये में व्यापार, अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य के मुकाबले मजबूत और स्थिर होगी भारतीय मुद्रा

रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में वृद्धि करनी होगी जिसके लिए भारत को मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

[डा. सुरजीत सिंह]। हाल में जारी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्व की अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। डालर के निरंतर मजबूत होने से महत्वपूर्ण मुद्राएं कमजोर पड़ने लगी हैं। विभिन्न देशों के विदेशी मुद्रा भंडार घटने लगे हैं, जिसके चलते वैश्विक वृद्धि दर घट रही है। आर्थिक परिदृश्य बदलने से वैश्विक भू-राजनीति भी बदल रही है। भारत सरकार ने इस पर गंभीरता से विचार करना प्रारंभ किया है कि इन बदलते वैश्विक हालात के लिए जिम्मेदार अमेरिकी डालर पर निर्भरता को कैसे कम किया जाए?

इस संदर्भ में आरबीआइ ने एक नई शुरुआत करते हुए यह घोषणा की कि निर्यातक एवं आयातक रुपये में भी व्यापार कर सकेंगे। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाना एवं डालर में होने वाली व्यापार निर्भरता स्थिर मुद्रा के प्रकार को कम करना है। रुपये में होने वाले पारस्परिक लेनदेन के लिए आरबीआइ ने एक प्रणाली विकसित की है। इससे निर्यात और आयात की कीमत और चालान सभी कुछ रुपये में ही होगा।

विश्व की बदलती आर्थिक परिस्थितियों में बहुत से देश न चाहते हुए भी अपना व्यापार डालर में करने को मजबूर हैं। भारत 86 प्रतिशत व्यापार डालर में करता है। भारत के आयात, निर्यात से ज्यादा होने के कारण अधिक डालर की आवश्यकता होती है। अप्रैल से सितंबर 2022 के दौरान भारत का कुल निर्यात 229.05 स्थिर मुद्रा के प्रकार अरब डालर एवं आयात 378.53 अरब डालर का हुआ। रुपये-डालर की विनिमय दर को बनाए रखने के लिए आरबीआइ 50 अरब डालर से अधिक व्यय कर चुका है। भारत की तरह दुनिया का भी अधिकांश व्यापार डालर में ही होता है। विश्व के सभी देश डालर के सापेक्ष अपनी-अपनी विनिमय दर को स्थिर करने के प्रयासों में लगे हुए हैं। बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए अमेरिका के फेडरल रिजर्व ने ब्याज की दर को बढ़ा दिया है, जिससे विश्व के धन का प्रवाह अमेरिका की तरफ होने लगा है। इससे डालर और मजबूत होता जा रहा है।

इन परिस्थितियों में डालर के दबदबे को कम करने के लिए भारत सरकार ने सही समय पर सही पहल की है। रुपये में व्यापार करने का फैसला ऐसे समय में आया है, जब दुनिया के अधिकतर देश न सिर्फ मुद्रा भंडार में कमी का सामना कर रहे हैं, स्थिर मुद्रा के प्रकार स्थिर मुद्रा के प्रकार बल्कि अंतरराष्ट्रीय वित्तीय निपटान में कठिनाइयों से भी जूझ रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत की यह व्यवस्था विनिमय दर में होने वाले उतार-चढ़ाव के जोखिमों से भी सुरक्षा प्रदान करेगी। यह उन भारतीय निर्यातकों की समस्या को कम करेगी, जिनका भुगतान युद्ध के कारण अटका हुआ है। यह रूस और ईरान जैसे देश के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों को बेहतर बनाने में मददगार होगी, जिन पर अमेरिकी प्रतिबंध है। रुपये में व्यापार से विश्व भर में न सिर्फ इसकी स्वीकृति बढ़ेगी, बल्कि विश्व में भारत का अर्थिक स्तर भी बढ़ेगा।

विदेश मंत्रालय के सार्थक प्रयासों का ही नतीजा है कि अनेक देशों विशेष रूप से श्रीलंका, मालदीव, विभिन्न दक्षिण पूर्व एशियाई देश, अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देशों ने भी रुपये में व्यापार करने में अपनी सहमति व्यक्त की है। भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए रूस सहर्ष तैयार है। रुपये-रूबल में व्यापार के बाद रुपया-रियाल एवं रुपया-टका में व्यापार की दिशा में कार्य प्रारंभ हो चुका है। यदि इन सभी देशों को किया जाने वाला भुगतान रुपये में होगा तो इसका सीधा लाभ भारतीय अर्थव्यवस्था को होगा। श्रीलंका की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से वह भी भारत के साथ रुपये में व्यापार करने के लिए तैयार है। स्पष्ट है कि आने वाले समय में रुपया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान स्थापित करेगा।

कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि यह व्यवस्था उन देशों में ही सफल हो पाएगी, जहां आयात और स्थिर मुद्रा के प्रकार निर्यात लगभग बराबर है। वे यह भी प्रश्न करते हैं कि यह व्यवस्था उन देशों में कैसे लागू होगी, जिन देशों के पास बैलेंस शेष रह जाएगा। भारत सरकार इसके लिए कई क्षेत्रीय समूहों जैसे ब्रिक्स के साथ एक रिजर्व मुद्रा की व्यवस्था बना सकती है, जिससे जुड़े हुए देश पारस्परिक रूप से आपसी मुद्राओं में व्यापार कर स्थिर मुद्रा के प्रकार सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि इस व्यवस्था के सफल होते ही विश्व का आर्थिक खेल ही बदल जाएगा।

इस प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य किसी अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के महत्व को कम करना नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय रुपये को बेहतर बनाने की एक शुरुआत करना है। यह समय की मांग भी है कि भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्थिर मुद्रा के प्रकार बाजार एक-दूसरे के लिए अधिक खुले विकल्प रखें एवं विभिन्न प्रकार के वित्तीय साधनों के संबंध में रुपये को अधिक उदार बनाएं। इसके लिए आवश्यक है कि रुपये के संदर्भ में एक मजबूत विदेशी मुद्रा बाजार बनाया जाए। बैंकिंग क्षेत्र की सुदृढ़ता के लिए आवश्यकतानुसार सुधार निरंतर जारी रहने चाहिए।

पिछली सदी के नौवें दशक में जब भारत एक बंद अर्थव्यवस्था थी, विदेशी मुद्रा दुर्लभ थी और डालर ‘भगवान’ था। बदलते समय के साथ रूस एवं चीन ने हमारे समक्ष उदाहरण पेश किया कि डालर के बिना भी अर्थव्यवस्था को चलाया जा सकता है। यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय रुपया अंतरराष्ट्रीय बाजार में अन्य मुद्राओं के मुकाबले मजबूत और स्थिर बनेगा। रुपये को वैश्विक मान्यता दिलाने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार में भी वृद्धि करनी होगी, जिसके लिए भारत को एक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाना होगा। रुपये में निवेश एवं व्यापार को बढ़ाने से रुपये के मूल्य में भी वृद्धि होगी, जो वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी के नए आयाम स्थापित करेगी।

मुद्रा का प्रचलन वेग | What is the velocity of money in economics in hindi | मुद्रा के प्रचलन वेग को प्रभावित करने वाले कारक

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दरअसल मुद्रा का प्रचलन वेग एक ऐसा अंतर्जात तत्व है। जो मुद्रा की पूर्ति को प्रभावित करता है। यदि मुद्रा का प्रचलन वेग बढ़ता है तो मुद्रा की पूर्ति में कमी होने पर भी बैंक साख में गिरावट नहीं आती है। इस अंक में हम मुद्रा के स्थिर मुद्रा के प्रकार प्रचलन वेग का अर्थ एवं इसके निर्धारक तत्वों के बारे में अध्ययन करेंगे।

मुद्रा का प्रचलन वेग (Mudra ka prachalan veg)

मुद्रा के प्रचलन वेग से आशय यह है कि किसी समय में वस्तुओं एवं सेवाओं को ख़रीदने में मुद्रा की किसी निश्चित मात्रा का औसतन कितनी बार प्रयोग होता है? मुद्रा के प्रचलन वेग से तात्पर्य चलायमान मुद्रा से है, स्थिर मुद्रा से नहीं जो कि बैंकों, संस्थाओं या व्यक्तियों केे पास संचित रहती है।

मुद्रा की विभिन्न इकाइयां लेनदेन की प्रक्रिया में कई हाथों से गुज़रती है। इस प्रकार एक निश्चित अवधि में मुद्रा की एक इकाई, औसतन जितनी बार भुगतान के लिए प्रयोग की जाती है उसे उस मुद्रा का प्रचलन वेग (mudra ka prachalan veg) कहते हैं। आइए इसे हम एक उदाहरण द्वारा समझते हैं।

माना कि ₹10 के नोट का किसी निश्चित समय में वस्तुओं एवं सेवाओं की ख़रीदी के लिए भुगतान के रूप में 5 बार प्रयोग किया जाता है। तो हम यह कह सकते हैं कि ₹10 के नोट का प्रचलन वेग 5 है।

चूं कि मुद्रा की अलग अलग इकाइयां किसी निश्चत समय में विभिन्न सौदों को निपटाती हैं। यानि कि मुद्रा की विभिन्न इकाइयों का प्रचलन वेग अलग-अलग होता है। इसलिए मुद्रा की प्रत्येक इकाइयों के प्रचलन वेग का अध्ययन करने के बजाय अर्थव्यवस्था की समस्त मुद्रा के औसत प्रचलन वेग को लिया जाता है। जिसे V द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

मुद्रा की पूर्ति ज्ञात करते समय उसके औसत प्रचलन वेग को ध्यान में रखना होता है। प्रचलन वेग बढ़ने तथा मुद्रा की पूर्ति में कमी होने पर भी मुद्रा की प्रभावपूर्ण पूर्ति (बैंक साख) में कमी नहीं आती है। आइए इसे एक उदाहरण द्वारा समझते हैं।

भारत में मुद्रा फ्यूचर्स

हिंदी

मुद्रा फ्यूचर्स

हर देश में एक मुद्रा होती है , और अन्य मुद्राओं के सापेक्ष इसका मूल्य हर समय बदलता रहता है। किसी देश की मुद्रा का मूल्य कई चीजों पर निर्भर करती है – अर्थव्यवस्था की स्थिति , इसके विदेशी मुद्रा भंडार , आपूर्ति और मांग , केंद्रीय बैंक नीतियां , आदि। एक स्थिर और मजबूत मुद्रा निवेशकों को आकर्षित करती है। ऐसा मुद्रा फ्यूचर्स के माध्यम से किया जा सकता है।

तो , यह कैसे काम करता है ? अमेरिकी डॉलर की तरह एक मुद्रा को अमेरिकी अर्थव्यवस्था की ताकत के कारण और निवेशकों के इसमें विश्वास के कारण मजबूत माना जाता है। निवेशक , इसलिए , अन्य मुद्रा के विरुद्ध डॉलर होल्ड करना अधिक पसंद करते हैं , और मांग और आपूर्ति के नियमों के अनुसार , मांग अधिक है , तो कीमत अधिक है।

किसी देश की मुद्रा की तुलना में अन्य मुद्रा का मूल्य उन कारकों पर निर्भर करेगा जिनका उल्लेख हमने ऊपर किया है , और ये घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय कारकों के कारण बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए , अमेरिका बनाम यूरोप में उच्च वृद्धि डॉलर को यूरो की तुलना में सस्ता करने का नेतृत्व करेगी। तो यूरो की प्रत्येक इकाई अधिक डॉलर लाएगी।

देश का केंद्रीय बैंक भी भूमिका निभा सकता है। उदाहरण के लिए , यदि भारतीय रुपए डॉलर के मुकाबले कमजोर है , तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ( आरबीआई ) मुद्रा बाजार में डॉलर बेच सकता है। इससे डॉलर की बढ़ी हुई स्थिर मुद्रा के प्रकार आपूर्ति रुपए की तुलना में उनकी कीमत कम कर देगी , और इसलिए डॉलर रुपए के खिलाफ कमजोर हो जाएगा।

मुद्रा के उतार चढ़ाव के प्रभाव

मुद्रा में भारी उतार – चढ़ाव किसी भी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए , यदि , अमेरिकी डॉलर के खिलाफ रुपया कमजोर हो जाता है , तो इससे आयात लागत और निर्यात सस्ता हो जाएगा। यह आयातकों को चोट पहुंचा सकता है , लेकिन निर्यातकों को लाभ होगा। चूंकि भारत एक प्रमुख तेल आयातक है , इसलिए इससे तेल आयात अधिक महंगा हो जाएगा , और डीजल और पेट्रोल जैसे ईंधन की कीमतें बढ़ जाएंगी। इन उच्च ईंधन की कीमतों में मुद्रास्फीति का प्रभाव होता है क्योंकि वे हर कमोडिटी को प्रभावित करेंगी जिसे ट्रांसपोर्ट किया जाना है। हालांकि , अमेरिकी डॉलर के खिलाफ रुपया मजबूत होता है , तो इससे निर्यात अधिक महंगा हो जाएगा। इसलिए, निर्यातक कम अर्जित करेंगे। यह सूचना प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों को प्रभावित करेगा। बदले में ये उतार चढ़ाव बदले निवेशकों को कारोबार के लिए मुद्रा फ्यूचर्स का चुनाव करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। आइए देखते हैं कि यह क्या है और यह कैसे काम करता है।

मुद्रा फ्यूचर्स क्या है?

जैसा कि हमने देखा है , मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन आयातकों और निर्यातकों दोनों को प्रभावित करते हैं। स्वाभाविक रूप से , वे ऐसे मुद्रा जोखिम के खिलाफ खुद की रक्षा करना चाहते हैं। ऐसा करने के लिए , वे फ्यूचर्स अनुबंध का सहारा लेते हैं।

भारत में मुद्रा फ्यूचर्स 2008 में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ( एनएसई ) पर पेश किए गए थे और बाद में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज ( बीएसई ), एमसीएक्स – एसएक्स और यूनाइटेड स्टॉक एक्सचेंज जैसे अन्य एक्सचेंजों तक बढ़ा दिए गए थे। मुद्रा विकल्प 2010 में पेश किए गए थे।

चूंकि एक मुद्रा का मूल्य दूसरे के सापेक्ष होता है , इसलिए ये फ्यूचर्स जोड़े में उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए , आप उन्हें अमेरिकी डॉलर (USD), यूरो (EUR), ग्रेट ब्रिटेन पाउंड (GBP) या जापानी येन (JPY) के खिलाफ भारतीय रुपए में प्राप्त कर सकते हैं।

आइए मुद्रा फ्यूचर्स में कारोबार कैसे करें इस पर नजर डालते हैं। मान लें कि रुपए के अमेरिकी डॉलर के विरुद्ध मजबूत होने पर एक सूचना प्रौद्योगिकी कंपनी मुद्रा जोखिम से बचाव करना चाहती है। यदि भारतीय रुपये का अमरीकी डालर में स्पॉट या वर्तमान दर 70 रुपये है , तो उस कीमत पर 1 लाख फ्यूचर्स अनुबंध खरीद सकता है। तो अगर रुपए का मूल्य बढ़ जाता है , और अमरीकी डालर के लिए दर 65 रुपये है , तो कंपनी अपने अनुबंध का उपयोग करने में सक्षम हो जाएगी , और 5 लाख रुपये का नुकसान बचाएगी ! इसी प्रकार , कोई आयात कंपनी अमरीकी डालर के सापेक्ष गिरने वाले रुपए के मूल्य के खिलाफ सट्टा लगा सकती है।

मुद्रा फ्यूचर्स का कारोबार कैसे करें

आप किसी भी ब्रोकर के साथ एक मुद्रा ट्रेडिंग खाता व्यवस्थापित कर सकते हैं। आपको प्रारंभिक मार्जिन नामक कुछ भुगतान करना होगा , जो आपके द्वारा किए जाने वाले कुल लेनदेन का प्रतिशत है। उदाहरण के लिए , यदि मार्जिन 4 प्रतिशत है और आप 1 करोड़ रुपये के इन लेनदेन को पूरा करते हैं , तो आपको ब्रोकर को 4 लाख रुपये के मार्जिन धन का भुगतान करना होगा।

इसलिए , मुद्रा फ्यूचर्स में आप एक छोटी राशि के लिए महत्वपूर्ण पदों को लेने में सक्षम हो जाएंगे। बेशक , जितनी अधिक महत्वपूर्ण स्थिति , उच्च लाभ और नुकसान के लिए उतनी ही क्षमता।आगर आप अपने सट्टे लगाते हैं तो आपको बेहतरीन लाभ होगा। यदि आप गलत होते हैं , तो आप बहुत सारा पैसा खो सकते हैं। यदि आप इसे सुरक्षित खेलना चाहते हैं , तो आप हमेशा मुद्रा विकल्पों में जा सकते हैं , जो कम जोखिम भरा है क्योंकि यह आपको स्ट्राइक मूल्य पर अनुबंध का प्रयोग नहीं करने का विकल्प देता है।

भारत में मुद्रा फ्यूचर्स एनएसई पर अनुबंध अधिकांश मुद्राओं के लिए 1000 के अनुबंध आकार में उपलब्ध हैं। जापानी येन के मामले में , यह 1 लाख है। मुद्रा और विकल्प दोनों का ही निपटान महीने के अंत में नगदी द्वारा किया जाता है। यानी कि , वास्तविक मुद्राओं का आदान – प्रदान नहीं किया जाता है।

मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है? - Economics (अर्थशास्त्र)

मुद्रा के प्रमुख कार्य क्या-क्या हैं? मुद्रा किस प्रकार वस्तु विनिमय प्रणाली की कमियों को दूर करता है?

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मुद्रा के हैं कार्य चार – माध्यम, मापक, मानक, भण्डार”
मुद्रा के प्रमुख कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है।
1. प्राथमिक कार्य ।
2. गौण कार्य

  1. विनिमय का माध्यम-यह मुद्रा का सर्वप्रथम और सर्वमहत्वपूर्ण कार्य है। मुद्रा के इस कार्य ने क्रय और विक्रय की इस क्रिया को एक दूसरे से भिन्न कर दिया है। आज का समय सभी अर्थव्यवस्थाएँ मौद्रिक अर्थव्यवस्थाएँ हैं। वस्तु विनिमय प्रणाली के सबसे बड़ी कमी दोहरे संयोग का अभाव है। इसे मुद्रा के इस कार्य से दूर कर दिया हैं अब यदि एक वस्त्रों का विक्रेता चावल खरीदना चाहता है तो उसे ऐसा चावल विक्रेता ढूंढने की आवश्यकता नहीं है जो बदले में वस्त्र चाहता है। वह वस्त्र बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है। और उस प्राप्त मुद्रा से चावल खरीद सकता है। अतः मुद्रा से दोहरे संयोग के अभाव की कमी स्वतः दूर हो जाती है। मुद्रा के इसी कार्य के कारण मुद्रा को सामान्यकृत क्रय शक्ति कहा जाता है।
  2. मूल्य की इकाई-मुद्रा का ‘लेखा की इकाई’ कार्य को मूल्यमान का मापक भी कहा जाता है। मुद्रा के इस कार्य को अर्थ है कि जिस प्रकार प्रत्येक चर को मापने की एक इकाई होती है वजन को किलो में, कद को सेमी. में, दूरी को किमी. में इसी प्रकार किसी वस्तु के मूल्य को मुद्रा में मापा जाता है। अतः मुद्रा मूल्य की मापक इकाई का कार्य करती है। यदि कोई पूछे कि इस पर्स का क्या मूल्य है। तो हम यह नहीं कहेंगे कि एक पर्स बराबर 5 किलो चावल या 10 पेन बल्कि हम मौद्रिक रूप में उसका मूल्य बतायेंगे। अतः मुद्रा लेखा की इकाई कार्य करती है। वस्तु विनिमय प्रणाली में सामान्य मूल्य मापक ‘या लेखा की इकाई का अभाव या जिसे मुद्रा के इस कार्य ने दूर कर दिया।
  3. स्थगित भुगतान का मान–आस्थगित भुगतान वे भुगतान होते हैं जो भविष्य में किसी समय भुगतान किये जाते हैं। क्योंकि मुद्रा का अपना मूल्य अर्थात् उसकी क्रय शक्ति सामान्यतः अपरिवर्ती रहती है। एक आधुनिक अर्थव्यवस्था में व्यावहारिक लेन-देन में साख और उधार का बहुत महत्व रहता है। आस्थागित भुगतान या स्थिर मुद्रा के प्रकार भविष्य भुगतान मुद्रा में ही संभव होते हैं क्योंकि एक तो मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है और इससे मुद्रा का विनिमय का माध्यम कार्य उसे सामान्यकृत क्रयशक्ति प्रदान करता है। मुद्रा का प्रयोग भविष्य भुगतानों से संबंधित खतरे को भी कम कर देती है। आज के समय में मुद्रा के कारण ही इतने दीघकालीन
    समझौते हो पाते हैं।
  4. मूल्य का संचय-जब कोई व्यक्ति अपनी भविष्य की आवश्यकताओं के लिए मूल्य का संचय’ करना चाहता है तो वह केवल मुद्रा के रूप में ही कर सकता है। इसके कारण इस प्रकार हैं:
    (i) मुद्रा की क्रय शक्ति अन्य वस्तुओं की तुलना में अपरिवर्तित रहती है।
    (ii) मुद्रा को कीड़ा दीमक आदि नहीं लगता अर्थात् मुद्रा रखे हुए नष्ट नहीं होती।
    (iii) मुद्रा का संचय करने में बहुत कम स्थान की आवश्यकता पड़ती है।
    (iv) मुद्रा को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर या एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को भेजा जा सकता है मान लो कोई व्यक्ति अपनी बेटी की शादी के लिए अभी से कुछ बचत करना चाहते हैं तो क्या वे अभी से भोजन बनवा सकते हैं या वे अभी से वस्त्र खरीदकर रख सकते हैं? नहीं वे मुद्रा के रूप में अपने भविष्य की आवश्यकताओं के लिए मूल्य का संचय कर सकते हैं।
  5. मूल्य का हस्तांतरण-मुद्रा के कारक मूल्य का हस्तांतरण आसान हो गया है। यदि किसी व्यक्ति को भारत से कनाडा में मूल्य का हस्तांतरण करना है तो मुद्रा के माध्यम से यह बहुत सहज हो गया है। बैंक मुद्रा इसमें और अधिक सहायक है। मुद्रा के इसी कार्य के कारण आज संपूर्ण विश्व एक ग्रामीण अर्थव्यवस्था की तरह लेन-देन कर पा रहा है।
    मुद्रा के प्रत्येक कार्य विनिमय प्रणाली की एक कमी को दूर कर रहा हैविनिमय प्रणाली की कमी मुद्रा का वह कार्य जो इस कमी को दूर कर रहा है।
    विनिमय के दोहरे संयोग का अभावमुद्रा का वह कार्य जो इस कमी को दूर कर रहा है
    आवश्कताओ के दोहरे संयोग का अभावविनिमय के माध्यम के रूप में
    मूल्य की इकाई का आभावलेखा / मूल्य की सामान्य मापक इकाई के रूप में
    स्थिगित भुगतानों के मापक का अभावमुद्रा स्थगित भुगतानो के मापक के रूप में
    मूल्य के संचय का अभावमूल्य का संचय मुद्रा के रूप में
    हस्तांतरण में कठिनाईमूल्य के हस्तांतरण का कार्य

इस प्रकार मुद्रा का प्रत्येक कार्य वस्तु विनिमय प्रणाली की एक कमी को दूर कर रहा है।

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