चलती औसत तुलना

एक घर की औसत आयु क्या है?
सभी चीजें जीने और गैर-रहने वाली उम्र के साथ बाहर पहनने के लिए, आपके घरों में शामिल हैं एक समय आता है जब इमारत अपनी संरचनात्मक शक्ति और बाहरी चमक को खोना शुरू कर देती है। घर का जीवन काल क्या है? आदर्श रूप से, किसी ठोस संरचना की औसत आयु 75-100 वर्ष है लेकिन, यह माना जाता है कि एक अपार्टमेंट की औसत आयु 50-60 वर्ष है, जबकि एक घर चलती औसत तुलना में यह 40 साल है स्वतंत्र घर की उम्र एक अपार्टमेंट की इमारत से बहुत धीमी है, जहां सुविधाएं और आम सेवाएं समाज के निवासियों के बीच साझा की जाती हैं। नियमित रूप से रखरखाव करके उनकी उम्र बढ़ने में सुधार किया जा सकता है। घरों की उम्र क्यों है? एक घर एक ऐसी संरचना है जो समय के साथ घटित होने वाले तत्वों के संयोजन से बना है। एक साथ रखो, पर्यावरणीय प्रभाव और मानव उपयोग दोनों नुकसान का अपना हिस्सा करते हैं इसके अलावा, खराब डिजाइन किए गए घरों में तेजी से नीचा दिखता है। पानी की पाइपलाइनों, बिजली के केबल और अन्य संबद्ध सेवाओं जैसे लगातार उपयोग किए जाने वाले समय समय पर अवक्रमित हो जाते हैं और निश्चित अवधि के बाद पहना जाता है। इसके अलावा, खिड़की और द्वार के उद्घाटन, खराब निर्माण की गुणवत्ता, जलरोधी, पेंटिंग, प्लंबिंग के लेआउट के परिणामस्वरूप समय से पहले घर की उम्र बढ़ जाती है। हालांकि, स्वतंत्र घर की उम्र एक अपार्टमेंट इमारत की तुलना में बहुत धीमी होती है जहां समाज के निवासियों के बीच सुविधाएं और सामान्य सेवाएं साझा की जाती हैं। आप अपने घर की उम्र कैसे बढ़ा सकते हैं? यहां कुछ उपाय दिए गए हैं जो आपकी संपत्ति का जीवन-काल सुधारने में आपकी मदद कर सकते हैं: नियमित रूप से सफाई और उचित अलगाव और अपशिष्ट पदार्थों का निपटान काफी महत्वपूर्ण है फर्नीचर रखरखाव और नियमित रूप से सफेदी अनिवार्य है, और इसलिए दीर्घाओं, नम दीवारों और पुठों की वार्षिक जांच हो रही है। भवन की उम्र का निर्णय लेने में मौसम की स्थिति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए, चेन्नई जैसे चलती औसत तुलना तटीय इलाकों के आसपास के शहरों में गहन गर्मी और आर्द्रता कारक का सामना करना पड़ता है। यह बिल्डिंग बाहरी मुखौटा को गिरावट का कारण बन सकता है। इसी प्रकार, जो क्षेत्रों में उच्च बारिश होती है, वे ठोस संरचना में पानी के नलिका, नमी और दरारों का सामना करेंगे। यह संरचना की औसत आयु को भी भारी प्रभाव डालता है। मौसम की स्थिति से लड़ने के लिए अच्छी तरह से अपनी संपत्ति तैयार करें। हमेशा एक स्थायी सामग्री चुनें जो घर को डिजाइन करने में कुशलता से उपयोग किया जा सकता है स्थानीय रूप से निर्मित चीजें खरीदने के लिए इसे पसंद किया जाता है क्योंकि स्थानीय स्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्हें तैयार किया गया है यह एक तरह से संरचना के जीवन काल में वृद्धि कर सकता है। अपने घर में धातु के तत्वों का उपयोग करने से बचें यदि आप तटीय इलाके के करीब रहते हैं क्योंकि समुद्र की हवा में नमक की सामग्री काफी अधिक है और रेलिंग और गढ़ा हुआ मुखौटा सामग्री को जंग कर सकते हैं। निर्माण के लिए सही तरह की सामग्रियों का उपयोग करके मैनिफोल्ड द्वारा आपके संरचना की औसत आयु में वृद्धि हो सकती है। एक बार निर्मित, नियमित रखरखाव, उचित अप-रखो अपने घरों को वर्ष के लिए स्वस्थ बना सकता है।
सागर में बारिश के सीजन का कोटा पूरा: सामान्य बारिश की तुलना में 101% हुई बारिश, नालों में उफान आने से सड़क और घरों में भरा पानी
बारिश का सीजन शुरू होने और मानसून की दस्तक के बाद से ही सागर में मानसून मेहरबान रहा है। जिले में लगातार बारिश हो रही है। जिससे बारिश के इस सीजन का कोटा पूरा हो गया है। जिले की सामान्य बारिश 1230.5 मिमी है। जिसकी तुलना में अब तक 1254.4 मिमी औसत बारिश हो चलती औसत तुलना चुकी है। यानी जिले में बारिश के इस सीजन में सामान्य बारिश की तुलना में 101 प्रतिशत बारिश हो चुकी है। अभी बारिश के सीजन के 15 दिन बाकी हैं। सागर में मंगलवार से शुरू हुई बारिश बुधवार को भी जारी रही। बुधवार सुबह से रुक-रुककर बारिश का सिलसिला चलता रहा।
बारिश से शहर के नालों में उफान आई। मधुकरशाह वार्ड, यादव कॉलोनी क्षेत्र में नाले का पानी घरों में घुस गया। अंबेडकर वार्ड में सड़कों पर जलजमाव की स्थिति बनीं। जिससे लोग परेशान हुए। मौसम विभाग के अनुसार सिस्टम सक्रिय होने और बंगाल की खाड़ी के अलावा अरब सागर से नमी मिल रही है। इस कारण से सागर समेत मप्र में रुक-रुककर बारिश हाे रही है। सागर जिले के कुछ स्थानों पर आगामी 24 घंटों में गरज-चमक के साथ बारिश होने की संभावना है। चलती औसत तुलना 18 सितंबर काे बंगाल की खाड़ी में एक और कम दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना है।
पिछले साल की तुलना में इस वर्ष 462 मिमी अधिक हुई औसत बारिश
सागर जिले में लगातार बारिश हो रही है। बारिश के सीजन के 15 दिन शेष है। लेकिन अभी भी जिले में बारिश की संभावना मौसम विभाग ने जताई है। जिससे इस वर्ष जिले में सामान्य से अधिक बारिश होगी। 1 जून से अब तक सागर जिले में 1254.4 मिमी सामान्य बारिश हो चुकी है। जबकि पिछले वर्ष 14 सितंबर तक जिले में 792.5 मिमी औसत बारिश दर्ज की गई थी। इस प्रकार पिछले साल की तुलना में इस वर्ष जिले में 462 मिमी यानी 53 प्रतिशत अधिक औसत बारिश हुई है।
सबसे ज्यादा केसली ब्लाक में हुई बारिश
बारिश के इस सीजन में सबसे ज्यादा बारिश केसली क्षेत्र में 1491 मिमी दर्ज की गई है। वहीं सबसे कम शाहगढ़ में 860 मिमी बारिश हुई है। इसके अलावा सागर में 1126, जैसीनगर में 1468, राहतगढ़ में 1355, बीना में 1473, खुरई में 1193, मालथौन में 1123, बंडा में 889, गढ़ाकोटा में 1236, रहली में 1438 और देवरी में 1397 मिमी बारिश दर्ज की गई है।
Arctic Warming : पृथ्वी से 4 गुना तेजी से गर्म हो रहा आर्कटिक, 20 फुट तक बढ़ सकता है समुद्र का जलस्तर, भारत की बढ़ेंगी मुश्किलें
Arctic Is Melting : लंबे समय से वैज्ञानिक यह मानते हैं कि आर्कटिक तेजी से गर्म हो रहा है। नॉर्वे और फिनलैंड में स्थित शोधकर्ताओं की एक टीम ने 1979 से सैटेलाइटों से इकट्ठा किए गए तापमान डेटा के चार सेटों का विश्लेषण किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि औसतन डेटा से पता चलता है कि आर्कटिक 0.75 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक गर्म हो रहा है, जो बाकी पृथ्वी की तुलना में लगभग चार गुना तेज है।
प्रतीकात्मक फोटो
संयुक्त राष्ट्र के क्लाइमेट साइंस पैनल ने 2019 में एक विशेष रिपोर्ट में कहा था कि आर्कटिक एम्प्लीफिकेशन (Arctic Amplification) के रूप में जानी जाने वाली प्रक्रिया के कारण आर्कटिक 'वैश्विक औसत की तुलना में दोगुने से भी अधिक' तेजी गर्म हो रहा है। यह तब होता है जब समुद्री की बर्फ, जो सूर्य की ऊष्मा को परावर्तित कर देती है, समुद्र के पानी के रूप में पिघल जाती है और गर्मी को अवशोषित कर लेती है।
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चार गुना तेजी से गर्म हो रहा आर्कटिक
लंबे समय से वैज्ञानिक यह मानते हैं कि आर्कटिक तेजी से गर्म हो रहा है। नॉर्वे और फिनलैंड में स्थित शोधकर्ताओं की एक टीम ने 1979 से सैटेलाइटों से इकट्ठा किए गए तापमान डेटा के चार सेटों का विश्लेषण किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि औसतन डेटा से पता चलता है कि आर्कटिक 0.75 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक गर्म हो रहा है, जो बाकी पृथ्वी की तुलना में लगभग चार गुना तेज है। शोधकर्ता मान रहे थे कि आर्कटिक बाकी पृथ्वी से दो गुना तेजी से गर्म हो रहा है लेकिन नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित अध्ययन में इसकी रफ्तार को चार गुना बताया गया है।
छह मीटर तक बढ़ सकता है समुद्रों का जलस्तर
घबराने वाली बात यह है कि आर्कटिक महासागर के कुछ हिस्सों में तापमान बढ़ने की दर सात गुना तक ज्यादा है। अध्ययन के सह-लेखक और फिनलैंड के मौसम विज्ञानी एंट्टी लिपपोनन ने कहा कि क्लाइमेट चेंज के लिए इंसान ही जिम्मेदार हैं। जैसे-जैसे आर्कटिक गर्म होगा इसके ग्लेशियर पिघलेंगे और इससे दुनियाभर के समुद्रों का जलस्तर प्रभावित होगा। ग्रीनलैंड आइस शीट में इतना पानी है कि यह महासागरों के जलस्तर को लगभग छह मीटर तक बढ़ा सकता है।
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चलती औसत तुलना
कानूनी कामकाजी उम्र के 90 करोड़ भारतीयों में से 50% से अधिक लोग, जिनमें विशेषकर महिलाएं, सही प्रकार के रोजगार न मिल पाने की बढ़ती हताशा के कारण नौकरी नहीं करना चाहती हैं। इन चौंकाने वाले आंकड़ों की सूचना को मुंबई स्थित एक निजी शोध फर्म सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के द्वारा रिपोर्ट किया गया है।
सीएमआईई डेटा का हवाला देते हुए ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 2017 से लेकर 2022 के बीच में, लगभग 2 करोड़ महिलाएं कुल श्रमशक्ति से गायब हो गई हैं, केवल 9% योग्य आबादी ही ऐसी है जो रोजगारशुदा है या सही पदों को लेकर आशान्वित है। इसी अवधि के दौरान सकल श्रमिक दर भी 46% से घटकर 40% हो गई।
ये आंकड़े ऐसे समय में सामने आये हैं जब भारत अपनी युवा श्रम शक्ति पर दांव लगा रहा है, जो अवसरों के अभाव के चलते लगातार निराश होता जा रहा है। हालाँकि इससे पहले सीएमआईई के आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च में बेरोजगारी की दर फरवरी में 8.10% से घटकर 7.6% हो गई थी। लेकिन यदि भारत के कानूनी तौर पर कामकाजी उम्र की विशाल संख्या को ध्यान में रखें तो यह प्रतिशत काफी अधिक है।
मार्च में हरियाणा में सबसे अधिक बेरोजगारी की दर 26.7% दर्ज की गई थी, जिसके बाद राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में से प्रत्येक में 25%, बिहार में 14.4%, त्रिपुरा में 14.1% और पश्चिम बंगाल में 5.6% की बेरोजगारी की दर बनी हुई थी।
नवीनतम सीएमआईई डेटा इस बात को दर्शाता है कि कैसे रोजगार सृजन करने की समस्या, विशेष तौर पर श्रम बल छोड़ने वाली महिलाओं की बढती संख्या, एक बड़े खतरे में तब्दील होती जा रही है। आबादी के 49% हिस्से का प्रतिनिधित्व करने के बावजूद, महिलाएं आर्थिक उत्पादन में सिर्फ 18% का योगदान कर रही हैं, जो कि वैश्विक औसत का लगभग आधा हिस्सा ही है।
सीएमआईई के महेश व्यास ने ब्लूमबर्ग के साथ अपनी बातचीत में बताया, “महिलाएं ज्यादा संख्या में श्रम शक्ति में शामिल नहीं हो रही हैं क्योंकि नौकरियां अक्सर उनके प्रति दयालु नहीं मिल रही हैं। उदाहरण के लिए, पुरुष अपनी नौकरियों तक पहुँचने के लिए ट्रेन की अदला-बदली के लिए तैयार रहते हैं; लेकिन महिलाओं के लिए ऐसा करने के लिए तैयार हो पाने की संभावना काफी कम है। ऐसा बड़े पैमाने पर हो रहा है।”
सेंटर फॉर इकॉनोमिक डेटा एंड एनालिसिस और सीएमआईई की एक संयुक्त रिपोर्ट, जिसका शीर्षक जनवरी में “भारत की सिकुड़ती महिला श्रम शक्ति’ था, ने पूर्व- कोविड-19 से लेकर महामारी के बाद के स्तरों की तुलना की है, जिससे पता चलता है कि 2021 में महिलाओं का राष्ट्रीय औसत मासिक रोजगार की दर 2019 की तुलना में 6.4% कम था।
शहरी क्षेत्रों में महिलाओं के औसत मासिक रोजगार की दर में भी काफी तेज गिरावट आई है, जिसमें 2019 की तुलना में 22.1% कम महिलाएं रोजगारशुदा थीं। 2019 और 2020 दोनों की तुलना में 2021 में कम महिलाओं ने सक्रिय रूप से नौकरियों की तलाश की थी, यह गिरावट बाद के वर्ष में तेजी से बढ़ी है, रिपोर्ट ने इस बात का दावा किया है।
चार राज्यों ने 2019 की तुलना में 2021 में औसत मासिक महिला रोजगार के क्षेत्र में 50% से भी अधिक की गिरावट देखी- तमिलनाडु (-50.9), गोवा (-56%), जम्मू-कश्मीर (तब एक राज्य, -61%) और पंजाब (57.9%) की दर से गिरावट देखी गई है।
2021 में भारत का औसत मासिक महिला रोजगार दर 2020 की तुलना में 4.9% अधिक था, लेकिन 2019 की तुलना में 6.4% कम था। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंतर अधिक था। 2021 में शहरी भारत में औसत महिला रोजगार की स्थिति 2020 की तुलना में 6.9% कम थी और 2019 के महामारी पूर्व वर्ष की तुलना में 22.1% कम था। जनवरी की रिपोर्ट ने दर्शाया है, हालाँकि ग्रामीण भारत में, 2021 में महिला रोजगार वर्ष 2020 की तुलना में 9.2% अधिक था और 2019 की तुलना में मात्र 0.1% कम था।
2019 की तुलना में शहरी भारत में 2021 में 22.1% कम महिलाएं कार्यरत थीं। इसके अलावा, 2021 में पहले से अपेक्षाकृत कम महिलाएं सक्रिय तौर पर नौकरियों की तलाश कर रही थीं। जबकि 2019 में हर महीने करीब 95 लाख महिलाएं सक्रिय रूप से नौकरियों की तलाश कर रही थीं, वहीँ 2020 में यह संख्या घटकर 83 लाख हो गई थी और 2021 में सिर्फ 65.20 लाख ही रह गई थी। यह प्रवृति शहरी और ग्रामीण भारत दोनों में देखने को मिली।
जून 2019 में जारी 2017-18 के लिए आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण ने कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में चौंकाने वाली भारी गिरावट का खुलासा किया। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के सर्वेक्षण के 68वें दौर के अनुमान के मुताबिक, कामकाजी उम्र की महिलाओं में से केवल 22% हिस्से को ही (जिसे 15 वर्ष या उससे अधिक उम्र के तौर पर परिभाषित किया गया है) मनमाफिक रोजगार हासिल हो सका था, जो कि 2011-12 में 31% घट गया था।
मार्च में भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि महिलाओं के लिए विवाह की न्यूनतम उम्र को बढ़ाकर 21 वर्ष करने की केंद्र की योजना से अधिक महिलाओं को श्रम शक्ति में शामिल करने के लिए प्रेरित कर सकती है, क्योंकि वे उच्च शिक्षा और कैरियर के विकल्प को चुन सकती हैं।
एसबीआई इकोरैप ने कहा है, “हमारा मानना है कि क़ानूनी उम्र को बढ़ाने से भारत का एमएमआर (मातृत्व मृत्यु दर) संभावित रूप से घटेगा और इसके चलते और अधिक संख्या में महिलाएं स्नातक बन सकती हैं और इस प्रकार श्रम शक्ति में शामिल हो सकती हैं। इसका एक दूसरा फायदा यह है कि क़ानूनी विवाह की आयु पुरुषों और महिलाओं के लिए एक समान हो जाएगी।”
जहाँ एक तरफ नौकरी की चाह रखने वालों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ती जा रही है, वहीं नरेंद्र मोदी सरकार पर्याप्त रोजगार के अवसर मुहैया करा पाने में विफल साबित हुई है। मैकिंसे ग्लोबल इंस्टीट्यूट की 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत को 2030 तक कम से कम 9 करोड़ गैर-खेतिहर रोजगार को सृजित करने की जरूरत है, यदि उसे अपनी वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि को 8% से 8.5% तक बनाये रखना है।
बेंगलुरू में सोसाइटी जेनरल जीएससी प्राइवेट के अर्थशास्त्री कुणाल कुंडू ने कहा, “निराश श्रमिकों के बड़े हिस्से से इस बात का खुलासा होता है कि भारत को अपनी युवा आबादी से जो लाभांश प्राप्त करने की उम्मीद थी उसकी संभावना नहीं है। भारत के मध्य-आय के मकड़जाल में फंसे रहने और के-शेप विकास की राह पर आगे बढ़ने के साथ-साथ असमानता को और बढ़ावा देने की संभावना बनी हुई है।”
पूर्व के सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले तीन वर्षों के दौरान शहरी बेरोजगारी की दर लगभग 8% के आसपास मंडरा रही है। अप्रैल-मई 2020 में नासमझी भरे पहले लॉकडाउन के दौरान यह 25% तक बढ़ गई थी। इसके बाद इसमें कुछ कम आई लेकिन मई 2021 में यह फिर से ऊपर चली गई और कोविड-19 की घातक दूसरी लहर और साथ में लगाये गए प्रतिबंधों के दौरान यह तकरीबन 15% तक पहुँच गया था। प्रतिबंधों में ढील देने के साथ यह फिर से नीचे आ गया था। लेकिन जब यह नीचे आया तो सके बाद से यह 8% या उससे अधिक के स्तर पर टिका हुआ है, और इससे कम नहीं हो रहा है।
सीएमआईई के अनुमानों के मुताबिक, जनवरी 2019 में शहरी भारत में रोजगार शुदा व्यक्तियों की कुल संख्या 12.84 करोड़ थी। दिसंबर 2021 की शुरुआत में यह संख्या घटकर 12.47 करोड़ हो गई थी। दूसरे शब्दों में कहें तो, भले ही जनसंख्या में वृद्धि हुई है (और इस प्रकार कामकाजी-उम्र की आबादी भी बढी है), लेकिन शहरी क्षेत्रों में लगभग 37 लाख रोजगारशुदा लोगों में पूर्ण गिरावट आई है।
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