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वित्त प्रबंधन

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वित्तीय प्रबंधन क्या है? | What is financial management? in Hindi

वित्तीय प्रबंधन का परिचय (Meaning of financial managerment)

व्यावसायिक संगठन को आर्थिक दुनिया में उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वित्त की आवश्यकता है। कोई भी इस तरह की व्यावसायिक गतिविधि वित्त पर निर्भर करती है। इसलिए, इसे व्यवसाय का जीवनदाता कहा जाता है
संगठन। चाहे व्यापारिक चिंताएँ बड़ी हों या छोटी, उन्हें पूरा करने के लिए वित्त की आवश्यकता होती है
उनकी व्यावसायिक गतिविधियाँ आधुनिक दुनिया में, सभी गतिविधियां वित्त प्रबंधन आर्थिक गतिविधियों से संबंधित हैं और किसी भी उद्यम या गतिविधियों के माध्यम से लाभ कमाने के लिए विशेष रूप से। पूरा कारोबार गतिविधियाँ सीधे लाभ कमाने से संबंधित हैं। (अर्थशास्त्र की अवधारणा के अनुसार
उत्पादन के कारक, मकान मालिक को दिया गया किराया, श्रम को दिया जाने वाला वेतन, पूंजी को दिया गया ब्याज
और शेयरधारकों या प्रोप्रायटर्स को दिया गया लाभ), एक व्यावसायिक चिंता को पूरा करने के लिए वित्त की आवश्यकता है
सभी आवश्यकताओं। इसलिए वित्त को पूंजी, निवेश, फंड आदि कहा जा सकता है, लेकिन
प्रत्येक शब्द के अलग-अलग अर्थ और अद्वितीय वर्ण होते हैं। लाभ बढ़ाना ही लाभ है

वित्तीय प्रबंधन क्या है?
वित्तीय प्रबंधन क्या है?

वित्त की योजना

वित्त को धन के प्रबंधन की कला और विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें वित्तीय शामिल हैं
सेवा और वित्तीय साधन। वित्त को धन के प्रावधान के रूप में भी संदर्भित किया जाता है
समय की जरूरत है। वित्त समारोह धन की खरीद और उनके प्रभावी वित्त प्रबंधन है
व्यावसायिक चिंताओं में उपयोग।
वित्त की अवधारणा में पूंजी, धन, धन और राशि शामिल हैं। लेकिन प्रत्येक शब्द है

एक व्यावसायिक उद्यम के उद्देश्य ”।

गुथुमन और डगल के अनुसार, “व्यापार वित्त को मोटे तौर पर परिभाषित किया जा सकता है
निधि की योजना, स्थापना, नियंत्रण, प्रशासन के साथ संबंधित गतिविधि के रूप में व्यवसाय में उपयोग किया जाता है ”।
पार्थर और वर्ट के शब्दों में, "व्यवसाय वित्त मुख्य रूप से ऊपर उठाने से संबंधित है,
उद्योग के गैर-वित्तीय क्षेत्रों में काम करने वाली निजी स्वामित्व वाली व्यावसायिक इकाइयों द्वारा धन का प्रशासन और वितरण करना ”।
कॉर्पोरेट वित्त बजट, वित्तीय पूर्वानुमान, नकदी से संबंधित है

प्रबंधन, क्रेडिट प्रशासन, निवेश विश्लेषण और फंड की खरीद
व्यावसायिक चिंता और व्यावसायिक चिंता को आधुनिक तकनीक को अपनाने की जरूरत है

वैश्विक पर्यावरण के लिए उपयुक्त अनुप्रयोग।


कॉर्पोरेट उद्यमों की वित्तीय समस्याएं। इन समस्याओं में वित्तीय पहलू शामिल हैं
प्रारंभिक विकास के दौरान नए उद्यमों और उनके प्रशासन को बढ़ावा देने के लिए, पूंजी और आय के बीच के अंतर से जुड़ी लेखांकन समस्याएं, द
विकास और विस्तार और अंत में वित्तीय द्वारा निर्मित प्रशासनिक प्रश्न
जो निगम के पास है या उसके पुनर्वास के लिए आवश्यक समायोजन
वित्तीय कठिनाइयों में आओ ”।

वित्त के प्रकार

वित्त, व्यापार की चिंताओं का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है, इसलिए, यह खेलता है
व्यावसायिक गतिविधियों के हर हिस्से में प्रमुख भूमिका। इसका उपयोग गतिविधियों के सभी क्षेत्र में किया जाता है
विभिन्न नामों के तहत।
वित्त को दो प्रमुख भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

कार्यालय पद्धति और शिक्षा विभाग अधिकारियों / अधिकारियों के लिए वित्त प्रबंधन पर अंतरिम प्रशिक्षण कार्यक्रम

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पंजीकृत कार्यालय

उच्च शिक्षा निदेशालय
हिमाचल प्रदेश - शिमला -17001
फ़ोन: +91-177-2656621(O)
फैक्स: 2811247
पीबीएक्स: +91-177-2653575, 2653386
ईमेल: dhe-sml-hp[at]gov[dot]in

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वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली के अनिवार्य उपयोग का किया शुभारंभ

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली के अनिवार्य उपयोग का किया शुभारंभ

केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि भारत सरकार की सभी योजनाओं के लिए सार्वजानिक वित्त प्रबंधन प्रणाली के आनिवार्य उपयोग से क्रियान्वयनकारी एजंसियों तक धनराशि के होने वाले प्रवाह की निगरानी की जा सकेगी।

जेटली ने कहा कि पीएफएमएस के जरिए धनराशि की निगरानी संभव होने से यह पता लगाया जा सकता है कि केन्‍द्र एवं राज्‍य सरकारों की क्रियान्‍वयनकारी एजेंसियों द्वारा धनराशि के उपयोग की वास्‍तविक स्थिति क्‍या है। जेटली कल नई दिल्ली में केन्‍द्रीय क्षेत्र की सभी योजनाओं के लिए सार्वजनिक वित्त प्रबंधन प्रणाली के अनिवार्य उपयोग का शुभारंभ करने के बाद वित्त एवं अन्‍य मंत्रालयों के वरिष्‍ठ अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे।

व्यक्तिगत वित्त के संदर्भ में जोखिम प्रबंधन पर जोर

यूक्रेन में भारतीय छात्रों एवं अन्य कार्यरत लोगों को भारत सरकार द्वारा सकुशल वापस लाया जा चुका है। यह इनके माता-पिता तथा परिजनों के लिए अत्यंत सुखद अनुभूति है किंतु साथ ही साथ अब इन्हें छात्रों के भविष्य की चिंता भी सताने लगी है। यह स्वाभाविक है। व्यक्तिगत वित्त के संदर्भ में इसीलिए जोखिम प्रबंधन पर अधिक बल दिया जाता है। भविष्य की अनिश्चितता एवं मानवीय व्यवहार की अस्थिरता ने ही जोखिम प्रबंधन को तार्किक एवं सुदृढ़ बनाने में प्रोत्साहन दिया है। जीवन के अन्य पहलुओं की भांति वित्तीय जोखिम विभिन्न परिमाणों, विभिन्न संभावनाओं के साथ आ सकता है। ऐसे जोखिम जो हमें कम प्रभावित करते हैं, उन्हें हम अनदेखा कर देते हैं, ऐसे जोखिम जो हमें डराते हैं अधिक वित्त प्रबंधन नुकसान कर सकते हैं। हम किसी न किसी रूप में जूझने का प्रयास करते हैं।

लेखक : करुणेश देव

ऐसे जोखिम जिन्होंने हमें 2020-22 में प्रभवित किया अथवा भविष्य में कर सकते हैं…

वित्तीय जोखिम:

1. मुद्रास्फीति का जोखिम:
मुद्रा स्फीति जैसे हमने पहले भी समझा है। हमारे पैसे के लिए सबसे बड़ा खतरा है, जो समय के साथ हमारे पैसे के मूल्य को कम करता रहता है। इसकी दर कम या अधिक हो सकती है किंतु यह निरंतर हमारे पैसे की क्रय शक्ति व रिटर्न को कम करता रहता है।

2. ब्याज दर का जोखिम:
कम ब्याज दरें भी इस वास्तविकता का प्रमाण हैं कि अपना नुकसान उठा कर कोई भी संस्था ग्राहकों का भला नहीं कर सकती। ब्याज दरों को समग्र आर्थिक वास्तविकता के साथ जोडऩा एक सच्चाई है। यदि हम यह कहें कि आज से उक्त वर्ष पहले दरें अधिक थीं, तो यह तुलना गलत होगी, क्योंकि हमें कई अन्य कारकों को भी ध्यान में रखना होगा। पिछली पीढ़ी की कमाई की तुलना में आज वेतन कई गुना बढ़ गया है। चाहे सार्वजनिक हो या निजी क्षेत्र।

3. बाजारों का जोखिम:
पहले कोरोना और अब यूक्रेन-रूस युद्ध संबंधित विश्व व्यापी बाजारों की गिरावट, यह ऐसा जोखिम है, जिसे पहले से जानना अथवा अनुमान लगाना कठिन है। बाजारों में निवेश वैसे भी जोखिम के अधीन होते हैं, किंतु इस तरह की पूरी तरह से अप्रत्याशित घटनाएं तेजी से वित्त प्रबंधन वित्त प्रबंधन गिरावट का कारण बनती हैं।

व्यक्तिगत जोखिम:
1. वित्तीय क्षति का जोखिम:
व्यापार में हानि, बैंक का बंद होना, गलत निवेश, वित्तीय धांधली, ऑनलाइन फ्रॉड, अवांछनीय वित्तीय उत्पाद में लंबी अवधि के लिए निवेशित रहना। ये सब वित्तीय क्षति पहुंचाने वाले हैं तथा इनसे कोई भी वर्ग आज अछूता नहीं है। मुद्रा स्फीति की अधिक दर भी आपके धन को धीरे-धीरे क्षति पहुंचाती है।

2. आय जोखिम:
यह जोखिम व्यापारियों, अपना व्यवसाय करने वालों अथवा कर्मचारियों, सभी के लिए है किंतु निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को अधिक सताता है। आय का जोखिम दो प्रकार से चिंता बढ़ाता है। पहला है आय का पूर्णतया या आंशिक रूप में रुक जाना तथा दूसरा समय के साथ एवं खर्चों के अनुपात में आय का न वित्त प्रबंधन बढऩा।

3. खर्च का जोखिम:
जिन परिवारों ने ऋण लेकर अपने बच्चों को पढ़ाई करने यूक्रेन भेजा था, वे बच्चों के भविष्य के साथ-साथ ऋण अदायगी व अपने खर्चे को लेकर भी अत्यधिक चिंतित हैं। इसी प्रकार कुछ खर्चे जो अप्रत्याशित रूप से आते हैं, आपके सुनियोजित एवं सुचारू वित्तीय जीवन में कभी भी जोखिम बढ़ा सकते हैं।

4. शारीरिक क्षति जोखिम:
व्यक्तिगत रूप में देखें तो जीवन जोखिम, स्वास्थ्य जोखिम, सुरक्षा जोखिम ये ऐसे जोखिम हैं, जिनसे हमें हर दिन जूझना पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप बीमारी, शारीरिक नुकसान अथवा जीवन हानि भी हो सकती है। यह केवल हमारी अपनी ही नहीं अपितु दूसरे की गलती से भी हो सकता है। इसके अन्य कारण पर्यावरण, जिस देश में आप रह रहे हैं या जो पेशा आप चुनते हैं, ये भी हो सकते हैं।

चलते चलते

पहले 2020 और आज 2022 हमें सतर्क रहने के साथ मानवीय मूल्यों को समझने तथा भविष्य के प्रति सजग रहने का संदेश दे रहा है। वित्तीय जोखिम व प्रबंधन हमारे जीवन मूल्यों का ही अभिन्न अंग है।

सोचिए, समझिए व जागरूक बनिए।

नोट : यहां दी गई जानकारी केवल शैक्षिक उद्देश्य से दी गई है। वित्त प्रबंधन किसी भी निवेश से पहले उसकी पूरी जानकारी अवश्य लें।

घाटे की वित्त व्यवस्था क्या होती है और इसके क्या उद्येश्य होते हैं?

जब कभी सरकार की आय उसके द्वारा उसके द्वारा किये जाने वाले व्ययों से कम हो जाती है तो बजट में इस प्रकार के घाटे को पूरा करने के लिए जो व्यवस्था अपनाई जाती है उसे घाटे की वित्त व्यवस्था या हीनार्थ प्रबंधन कहते है. घाटे की वित्त व्यवस्था को तीन प्रकार से पूरा किया जाता है. नए नोट छापकर, विदेशी वित्त प्रबंधन ऋण लेकर और आंतरिक ऋण लेकर.

Deficit Financing

हम में से बहुत से लोग सोचते हैं कि उनकी आय हमेशा उनके व्ययों से कम क्यों रह जाती है. दरअसल यह बात लोगों पर ही नहीं बल्कि अरबों डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले देशों पर भी लागू होती है. अर्थात दुनिया में लगभग हर देश की सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था का सहारा लेती है.

घाटे की वित्त व्यवस्था का मतलब (Meaning of Deficit Financing)

जब कभी सरकार की आय उसके द्वारा द्वारा किये जाने वाले व्ययों से कम हो जाती है तो बजट में इस प्रकार के घाटे को पूरा करने के लिए जो व्यवस्था अपनाई जाती है उसे घाटे की वित्त व्यवस्था या हीनार्थ प्रबंधन कहते है.

घाटे की वित्त व्यवस्था को तीन प्रकार से पूरा किया जाता है. (Sources of Deficit Financing)

1. नए नोट छापकर,

2. विदेशी ऋण लेकर (from Developed countries and international institutions)

3. आंतरिक ऋण लेकर अर्थात देश की जनता से ऋण लेकर ( through Ad-hoc Treasury Bills, government bonds etc)

भारतीय दृष्टिकोण से घाटे की वित्त व्यवस्था;( Deficit Financing in India)

भारत में जब सरकार वित्त प्रबंधन की कुल आय (राजस्व खाता + पूँजी खाता) उसके कुल व्यय से कम हो जाती है तो इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार रिज़र्व बैंक में जमा अपने नकद कोषों से धन निकालती है अथवा रिज़र्व बैंक तथा व्यापारिक बैंकों से ऋण लेती है या फिर नए नोट छापती है.

ध्यान रहे कि ऊपर बताये गए तीनों उपायों से देश की अर्थव्यवस्था में मुद्रा की पूर्ती में वृद्धि हो जाती है जिसके कारण कीमतों में वृद्धि हो जाती है. इसी कारण घाटे की अर्थव्यवस्था को “मुद्रा पूर्ती विचार” भी कहा जाता है. घाटे की वित्त व्यवस्था देश के राजकोषीय घाटे के बराबर होती है.

घाटे की वित्त व्यवस्था के निम्न उद्येश्य होते हैं; (Purposes of Deficit Financing)

1. देश के विकास के गति देने के लिए धन की कमी को दूर करना

2. मंदी काल में देश में व्याप्त बेरोजगारी से छुटकारा प्राप्त करने के लिए देश में अतिरिक्त निवेश को बढ़ावा देना.

3. अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के विकास में निवेश के लिए धन की व्यवस्था करना.

4. आकस्मिक वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ती और युद्धकालीन व्यय की पूर्ती के लिए वित्त की व्यवस्था करना.

5. देश में आधारभूत संरचना के विकास करके देश के करदाताओं को यकीन दिलाना कि उनके द्वारा दिया गया टैक्स सही जगह खर्च हुआ है.

घाटे की वित्त व्यवस्था के प्रभाव; (Impacts of Deficit Financing)

1. देश में मुद्रा की पूर्ती में वृद्धि होने के कारण महंगाई में वृद्धि

2. स्फितिक दबाव के कारण औसत उपभोग स्तर में कमी

3. आय की असमानताओं में वृद्धि क्योंकि अमीर नए निवेश के अवसर पाकर और भी अमीर होता वित्त प्रबंधन है.

4. बचत पर प्रतिकूल प्रभाव: - घाटे की वित्त व्यवस्था मुद्रास्फीति की ओर जाती है और मुद्रास्फीति स्वैच्छिक बचत की आदत पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.

5. निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव: - घाटे की वित्त व्यवस्था निवेश पर प्रतिकूल असर डालती है जब अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति बढ़ती है, उस वक्त ट्रेड यूनियन, कर्मचारी अधिक वेतन की मांग करते हैं. यदि उनकी मांगों को स्वीकार किया जाता है तो उत्पादन की लागत बढ़ जाती है जिससे निवेशक हतोत्साहित होते हैं.

सारांशतः यह कहा जा सकता है कि देश में घाटे की वित्त व्यवस्था इतनी बुरी नहीं है जितनी की यह दिखती है. शायद यही कारण है कि विश्व के हर अमीर देश में घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रयोग किया जाता है.

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